Internationale Zeitschrift für multidisziplinäre Forschungskonfiguration
DOI: 10.52984/ijomrc, (IIJIF) Auswirkungsfaktor: 1,590, ISSN: 2582-8649
DOI: 10.52984/ijomrc,
Mental health from the perspective of Maharishi Patanjali
(महर्षि पतंजलि के परिप्रेक्ष्य में मानसिक स्वास्थ्य)
Pragya Sao*; Dr. Arun Kumar Sao**
*Researcher; **Assistant Professor,
Dr. Harisingh Gaur University, Sagar, M. P., India
शोध सार:
वर्तमान युग में मानव जीवन मानव तनाव से भरा है। वह अपने दिनचर्या में इतना व्यस्त है कि स्वयं की मानसिक शांति के लिए वह समय नही निकाल पाता। इतनी व्यस्तता के कारण वह हमेशा परेशान रहता है। उसके अन्दर चिड़चिड़ापन, थकान, नींद में कमी, एकाग्रता में कमी, वजन का कम होना या बढ़ना, आत्मसम्मान में कमी महसूस करना आदि लक्षण परिलक्षित होने लगते है। आधुनिक चिकित्सा पद्धति का सहारा लेने पर हमें भी अच्छा लाभ नहीं मिलता जिससे मानव हताश और निराश होने लगता है। मानसिक स्वास्थ्य का आधार मन जो चित्त का एक भाग है और मानसिक स्वास्थ्य को बनाये रखने में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। आधुनिक चिकित्सा पद्धति में उतनी क्षमता नहीं की वह चित्त (मन) की अतल गहराई में उतर कर मानसिक स्वास्थ्य के मूल जड़ को खत्म कर सके जो अविद्या आदि क्लेशों और वृत्तियों के रूप में होता है। परन्तु योग ऐसा माध्यम है जिसको अपनाकर व्यक्ति अपने मानसिक स्वास्थ्य को सुधारकर पूर्ण स्वास्थ्य को प्राप्त कर सकता है। अर्थात योग से व्यक्ति का सर्वांगीण विकास होता है।
योग के आदिवक्ता हिरण्यगर्भ हैं और उन्होंने ही योग के ज्ञान को जनमानस तक पहुँचाने का कार्य किया है, जिसका स्वरूप हमें वेदों, उपनिषदों, पुराणों आदि में देखने को मिलता है। इन्हीं के विभिन्न ग्रंथों में योग के बिखरे स्वरूप को महर्षि पतंजलि ने इकट्ठा किया और उसे एक ग्रन्थ में लिपिबद्ध किया जो पातञ्जल योगसूत्र या योगदर्शन के नाम से जाना जाता है।
महर्षि पतंजलि मानसिक स्वास्थ्य की आदर्श स्थिति को बताते हुए कहते हैं - ‘योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः‘ अर्थात् चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है।
पातंजल योग सूत्र के भाष्यकार व्यास जी इस सूत्र की व्याख्या करते हुए कहते हैं -‘योगः समाधिः‘ अर्थात् योग ही समाधि है। स्पष्टतः योग ही साधन अर्थात् रास्ता और योग ही लक्ष्य हैं। समाधि की स्थिति में दृष्टा/ व्यक्ति अपने स्वरूप में स्थित हो जाता है और स्वास्थ्य का अर्थ ही है स्व में स्थित होना। यही समाधि की स्थिति मानसिक स्वास्थ्य की आदर्श स्थिति है। इस स्थिति में मानव पूर्ण मानसिक स्वास्थ्य को प्राप्त करता है।
कूट शब्द- योग, चित्त, चित्तवृति, क्लेश, समाधि, विवेकख्याति, अभ्यास, वैराग्य ।