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भारतीय संस्कृति के पारंपरिक और बदलते आयाम में महिलाओं का चित्रण

(भारतीय संस्कृति के परिवर्तनशीलता में परिवर्तनशील महिला का चित्रण)

डॉ. रजनी गुप्ता

सहायक प्रोफेसर, समाजशास्त्र विभाग

गंगाशील महाविद्यालय, फैजुल्लापुर,

नवाबगंज, बरेली

संबंधित लेखक: rajnisunilgupta2002@gmail.com

डीओआई: 10.52984/ijomrc1407

भारतीय संस्कृति में महिलाओं को बहुत अच्छा स्थान मिला है, जबकि अन्य देशों में महिलाओं को केवल भोग की वस्तु माना जाता है। "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता" का अर्थ है कि जहाँ नारी की पूजा की जाती है, वहाँ देवता निवास करते हैं। भारतीय संस्कृति में महिलाओं की स्थिति प्राचीन से आधुनिक काल तक बदलती रही है। विश्व की दिव्य शक्ति दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती आदि को नारी शक्ति, धन और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। वैदिक काल भारतीय नारी के लिए स्वर्णिम काल था। ऐतिहासिक पात्रों में भी उन्हें नायिका के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति समय के साथ बदलती रही है। उत्तर वैदिक काल में महिलाओं की स्थिति में उतार-चढ़ाव आने लगा और इस युग में सती, पर्दा प्रथा की प्रथा शुरू हुई। मध्यकाल में मुगलों के आने के बाद महिलाओं पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए गए, जिससे बाल विवाह, बेमेल विवाह, सती प्रथा, कई बुराइयां हावी हो गईं, जिससे महिलाओं की स्थिति में बदलाव आया।
आजादी के बाद महिलाओं को संविधान द्वारा पुरुषों के बराबर सभी अधिकार मिले। समाज सुधारकों ने क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं की स्थिति और उससे जुड़ी विभिन्न समस्याओं को दूर करने का प्रयास किया है। जिससे महिलाओं की स्थिति में बदलाव आया और आज वे हर क्षेत्र में अपना दबदबा कायम कर रही हैं। वास्तव में नारी शक्ति प्रकृति का आधार है और भारतीय संस्कृति की सर्वोच्च पालनकर्ता और रक्षक है।


कीवर्ड:  भारतीय-संस्कृति के पारंपरिक-आयाम, वैदिक, आधुनिक, स्थिति, परिवर्तनशीलता

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