बहुआयामी अनुसंधान विन्यास के अंतर्राष्ट्रीय जर्नल
DOI: 10.52984/ijomrc,
पितृकेंद्रित समाज में महिलाओं द्वारा सामना की जाने वाली सामाजिक-सांस्कृतिक चुनौतियाँ
गायत्री सैनी*, डॉ. तनु राजपाल**
*रिसर्च स्कॉलर, अंग्रेजी विभाग, करियर प्वाइंट यूनिवर्सिटी, कोटा, राजस्थान, भारत;
**एसोसिएट प्रोफेसर, अंग्रेजी विभाग, अक्लंक कॉलेज, कोटा, राजस्थान, भारत
संबंधित लेखक: gayatribalandia@gmail.com
डीओआई: 10.52984/ijomrc2111
सार:
इस तथ्य के बावजूद कि हमारा संविधान कानूनों के समक्ष समानता की गारंटी देता है, हमारे पास अभी भी मजबूत लैंगिक पूर्वाग्रह और लैंगिक असमानता है। सामाजिक व्यवस्था पदानुक्रम पर आधारित है, जहां पुरुष हावी है और महिलाओं की स्वतंत्रता को कम करता है। महिलाओं को उनके जन्म के समय से ही हीन महसूस कराया जाता है। बचपन से ही, उन्होंने परिवार में एक माध्यमिक स्थान पर कब्जा कर लिया है। उन्हें आज्ञाकारी, निर्विवाद, नम्र और आज्ञाकारी बताया गया है। उन्हें हर चीज को, यहां तक कि हार को भी, इनायत से स्वीकार करने के लिए बनाया जाता है। शादी के बाद, उनसे बदलते पारिवारिक तरीकों और परिवेश के साथ तालमेल बिठाने की उम्मीद की जाती है। उन्हें दयनीय और दयनीय जीवन जीना पड़ता है और अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं को पूरा करने में असफल रहते हैं। इस प्रकार, महिलाएं अपने पूरे जीवन में समान स्थिति और स्वतंत्रता के लिए कड़ी मेहनत करती हैं। प्रस्तुत पेपर एक पितृसत्तात्मक समाज में लैंगिक उत्पीड़न के प्रकारों और महिलाओं के सामने आने वाली सामाजिक-सांस्कृतिक चुनौतियों का अध्ययन करने का एक प्रयास है, चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित। महिला मानस को लगातार सामाजिक दिमाग से पीड़ा होती है। यह पेपर लैंगिक उत्पीड़न के संबंध में भारतीय समाज में प्रचलित कई कुरूप प्रथाओं का आलोचनात्मक विश्लेषण है। यह लेख अस्तित्व के इस दुर्भावनापूर्ण चक्र को दूर करने के साधनों पर भी प्रकाश डालेगा।
कीवर्ड: द्वितीयक स्थान, लिंग उत्पीड़न, सामाजिक-सांस्कृतिक चुनौतियां, पितृसत्तात्मक समाज।