बहुआयामी अनुसंधान विन्यास के अंतर्राष्ट्रीय जर्नल
DOI: 10.52984/ijomrc,
Importance of Yoga philosophy of Vivekananda in modern era
(आधुनिक युग में विवेकानंद के योग दर्शन का महत्व)
Dr. Deepshikha Namdev
* vice principal, Balaji institute of education,
rangbadi kota rajasthan, India
DOI: 10.52984/ijomrc3105
सरांश
हमारी भारतीय संस्कृति समस्त विद्याओं की जननी है इस संस्कृति में शायद ही ज्ञान का कोई ऐसा क्षेत्र बचा होगा जिस का समावेश हमारी संस्कृति में ना हुआ हो यहां पर ज्ञान और अनेक गोपनीय विद्याओं की एक ऐसी श्रंखला देखने को मिलती है जो शायद ही अन्यत्र कहीं प्राप्त होती होगी इसी श्रंखला में एक श्रंखला और परंपरा दिखाई देती है योग की भारतीय संस्कृति की जो वैदिक परंपरा है उस पर यदि हम दृष्टिपात करें तो योग विद्या का बहुत ही गहन और अनिर्वचनीय ज्ञान का वर्णन देखने को मिलता है हमारी संस्कृति में परंपरा में ऐसे महर्षि ऋषि मुनि विलक्षण प्रतिभाओं का अखंड सागर था जिसकी उच्च स्तरीय ज्ञान उर्जा भंडार से हम आज भी वो तो रोते हैं और सुरक्षित एवं स्वस्थ हैं हमारे हमारे इस शोधपत्र में हम यह बताने का प्रयास करेंगे की अनेक प्रतिभाओं में योग की अनेक धाराओं में स्वामी विवेकानंद का योग किस प्रकार समाज के लिए आज के आधुनिक युग के लिए लाभप्रद है उनके व्यक्तित्व विकास के लिए उनके सर्वांगीण विकास के लिए क्योंकि आज जितनी समस्याएं हैं जितने भी कष्ट हैं उनका कारण कहीं ना कहीं मनुष्य स्वयं है यह मानव जाति अपनी अव्यवस्थाओं के कारण चाय में वैचारिक हूं चाहे वह मानसिक आध्यात्मिक होम पारिवारिक हूं या सामाजिक सभी ने कहीं ना कहीं एक व्यवस्था देखने को मिलती है जो हमारे कष्ट का हमारे बंधन का कारण बनती है और हमारे साधना मार्ग में एक बहुत बड़ी बाधा के रूप में देखने को मिलती है किस प्रकार हम इस जाल से बाहर निकले जो स्वयं मानव ने अपने लिए बोल रखा है इसका बहुत ही स्पष्ट और सरल रूप में वर्णन हमें स्वामी विवेकानंद के योग दर्शन से प्राप्त होगा।
मुख्य शब्द- संस्कृति, ज्ञान, राज-योग, भारतीय परंपरा, योग